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दादा की कहानी पोती की जुबानी

दादा की कहानी पोती की जुबानी     स्वतंत्र भारत में पैदा होने का सुख   भले ही आज की पीढ़ी की   समझ से बाहर की चीज हो पर एक पीढ़ी पहले तक जन्मे लोग इसके महत्व से परिचीत अवश्य हैं   क्योंकि उन्हें यह दिन दिखाने के लिए उनके बाप   दादाओ   ने जो   कुर्वानिया दी थीं, वे उन्हें याद हैं    , मैं स्वतंत्र भारत में पैदा होने वाली पहली पीढ़ी हूँ .पापा परतन्त्रता की बेड़ियों में जकड़ी भारत माता की औलाद हैं ,उनके पिताजी यानि   मेरे दादा जी स्वतन्त्रता आन्दोलन के एक सशक्त कार्यकर्ता थे .          व्यक्ति को जो सहज प्राप्य होता है ,उसका सुख ,उसका महत्व उसे आड़ोलित नहीं करता लेकिन मुझे करता है क्योंकि मैं दादा जी की आँखों से देखने का प्रयत्न करती हूँ .     बिहार के दरभंगा जिले के एक छोटे से गाँव कछुआ चकौती में उनका जन्म हुआ था .माता पिता की इकलौती संतान सो भी पुत्र रत्न ,कई पीढ़ियों से एक ही संतान की परम्परा चली आ रही थी .कहते हैं किसी योगी का श्राप था .यही कारण है कि गाँव के बाकि घरों...
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